रसिकाचार्यो की मानसी सेवा –
श्री बिहारिन देव जी महाराज वृंदावन के हरिदासी सम्प्रदाय के एक रसिक संत हुए है । श्री विट्ठल विपुल देव जी से विरक्त वेश प्राप्त करके भजन मे लग गए । श्री गुरुदेव के निकुंज पधारने के बाद बांकेबिहारी लाल जी की सेवा का भार बिहारिन देव के ऊपर था । एक दिन बिहारिन देव जी प्रातः जल्दी उठकर श्रीयमुना जी मे स्नान करने गए और उनका मन श्री बिहारी जी की किसी लीला के चिंतन मे लग गया । उनकी समाधि लग गयी और वे मानसी भाव राज्य मे ही अपनी नित्य सेवा करने लगे ।
प्रातः काल भक्त लोग और नित्य दर्शन को आने वाले ब्रजवासी मंगला आरती हेतु आये । बहुत देर तक पट नही खुले तो वहां के सेवको से पूछा – क्या आज प्यारे को जगाया नही गया? अभी तक मंगला आरती क्यो नही हुई? सेवको ने कहा की पट तो तभी खुलेंगे जब श्री बिहारिन देव जी यमुना स्नान से लौटेंगे क्योंकि ताले की चाबी उन्ही के पास है और सेवा भी वही करते है । बिहारिन देव जी की मानसी सेवा से समाधि खुली शाम ५ बजे और वे स्थान पर वापास आये ।
वैष्णवो और ब्रजवासियों ने पूछा – बाबा! कहां रह गए थे? आज बिहारी जी को नही जगाया , भोग नही लगाया , सुबह से कोई अता पता नही । बिहारिन देव जी बोले – बिहारी जी ने तो आज बहुत बढ़िया भोग आरोगा है । रसगुल्ला, दाल, फुल्का, पकौड़ी, कचौरियां, जलेबी खाकर बिहारी जी प्रसन्न हो गए । आज मैने ठाकुर जी को सुंदर गुलाबी रंग की पोशाख पहनायी है और केवड़ा इत्र लगाया है । सारा गर्भ गृह केवड़े की सुंदर सुगंध से महक रहा है ।
ब्रजवासी बोले – बाबा हम सुबह से यही बैठे है । ताला खोलकर तुम कब आये और कब बिहारी जी का श्रृंगार करके भोग धराया ? कैसी अटपटी बाते करते हो , क्यो असत्य बात करते हो? बाबा कोई नशा कर लिया है क्या ?
बाबा बोले –
कोऊ मदमाते भांग के , कोऊ अमल अफीम ।
श्री बिहारीदास रसमाधुरी, मत्त मुदित तोफीम ।।
कोई भांग के नशे मे मस्त रहता है तो कोई अफीम के परंतु बिहारीदास तो बिहारिणी बिहारी जी के रस माधुरी के नशे मे मस्त रहता है ।
बिहारिन दास जी ने आगे जाकर पट खोले तो सबने देखा की बिहारी जी ने सुंदर गुलाबी पोशाख पहनी है, गर्भगृह से केवड़े का इत्र महक रहा है और बगल मे भोग सामग्री भी वही रखी है जो बाबा ने बताई थी । सब समझ गए की बिहारिन दास जी सिद्ध रसिक संत है और इनको मानसी सेवा सिद्ध हो चुकी है ।
यह धरा ऐसे ही भक्तों से शोभायमान है। बोलो बांके बिहारी की जय
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सीताराम । धन्यवाद तोमर जी ।
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